Dollar ka Note                           डॉलर का नोट

प्रकाशक

केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा


असरदार मार और रंजकता का गुण इन व्यंग्यों की ताकत है

- प्रो. बी. एल. आच्छा


        धर्मपाल महेन्द्र जैन का व्यंग्य संग्रह 'डॉलर का नोट' चौंकाता-सा शीर्षक है। डॉलर, डॉलर है और नोट, नोट। पर यह कोई एक्सचेंज का मुद्रा बाजार नहीं। बल्कि जन्मभूमि रानापुर (झाबुआ) के लोक जीवन से न्यूयार्क-टोरंटो की रंगीन दुनिया के बीच प्रवासी अनुभवों की व्यंग्य-व्यथा को पारदर्शी बनाता है। 'मैं' के आत्मकथात्मक तेवर में यह प्रवासी आत्मा कितनी प्रफुल्ल किन्तु विनोदी व्यंग्य मुद्रा में अपनी लिपि उत्कीर्ण कर जाती है- "मैं मन से भारतीय, काम से अमेरिकन, देह से कैनेडियन और दिमाग से खुराफाती हूँ। संस्कृतियों का मिश्रण हूँ, जायकेदार भारतवंशी। आलू को कहीं भी डाल दो अपनी छाप छोड़ जाता है।" आलू के बहाने वसुधैव कुटुम्बकम् की विश्वदृष्टि सांस्कृतिक बन जाती है, सभ्यता के नाते समावेशी बन जाती है, दिमाग के नाते नवोन्मेषी की जाती है। पर यह तो निबंधात्मक पक्ष है, जिसमें यह व्यंग्य-वक्रता का खुराफाती वायरस इमोजी की तरह झमाझम कूद मचाता है।

भारतीय जमीन की देशी जड़ों में पला-बढ़ा प्रवासी व्यंग्यकार प्रवासी जीवन में नये अर्थ पाता है और हिन्दी के व्यंग्य को आंगन के पार-द्वार से समृद्ध करता है, तो निश्चय ही ये रचनाएँ पाठक से अंतरंग होंगी।


संस्करण - 2023 www.hindisansthan.org