आदमी के बच्चे Making of the children
सदियों पुरानी बात है तब धरती लोक नहीं था। इंद्र राज्य बढ़ाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। वहाँ दसों दिशाओं से आए चमचे जमा थे। चमचे दैनिक भत्ता लेने और हाँ जी, हाँ जी करने आए थे। इन्द्र धरती को विकसित करना चाहते थे। उन्होंने हजारों देवताओं के तबादले धरती लोक में कर दिए थे पर देवता लावारिस संतान नहीं थे, उन्होंने तिकड़में भिड़ाईं और तबादले रद्द करवा लिए। एक बेचारे मनु ही ऐसे थे, जिनकी कोई एप्रोच नहीं थी। उनके पास दो-चार लाख रुपए भी नहीं थे। सो उनको बोरिए-बिस्तर समेत ‘पैराशूट’ से नीचे पटक दिया गया था।
बैठक शुरू हुई। गृहमंत्री ने निवेदन किया कि धरती के विकास के लिए देवताओं को सजा न दी जाए। धरती घरेलू साधनों से विकसित हो यानि वहाँ के निवासी वहीं बने। दरबारी प्रसन्न हो गए। उन्होंने प्रसन्नता में डमरू बजाए। विधाता ने सुझाव दिया, सरकार कहे तो दस-बीस लाख आदमी ठेके में बनवा लें। धरती पर जाएँगे तो भी इन्द्र के गुण गाएँगे। यह प्रस्ताव सुन कर वहाँ के सार्वजनिक निर्माण वालों को नानी-दादी याद आ गईं। उन्होंने आदमी की जगह हैरतअंगेज़ नमूना बनाने की योजना रखी। उन्होंने प्रस्तावित आदमी का ऐसा मॉडल बनाया कि वह ऑटोमेटिक आदमी पैदा कर सके। इस तरह हमेशा आदमी बनाने की झंझट से वे बच गए। अपनी सत्ता का वर्चस्व रखने हेतु विधाता ने आदमी को मारने के लिए यमदूतों की भरती का सुझाव रख दिया।
सारी बहस में एक जोकरनुमा बड़बोले देवता उपेक्षित हो रहे थे। उन्होंने ढोल पर थाप मार कर सब देवताओं का ध्यान आकर्षित किया और कहा, “भगवन् आदमी एक मुश्त में नहीं बनना चाहिए। वह पहले एक बालिश्त का हो, फिर दो बालिश्त का, फिर तीन का। वह टुकड़ों-टुकड़ों में बड़ा बने। बड़ा मजा आएगा भगवन्। इससे देवता और आदमी में कुछ अन्तर भी रहेगा। भगवान उनकी बात मान लेंगे तो वे अपनी दाढ़ी कटा कर बाल देवी के चरणों में अर्पित कर देंगे।”
एक युवातुर्क देवता खड़े हुए। उन्होंने कहा दस साल की उम्र तक आदमी बच्चा रहेगा। फिर किशोर कहा जाएगा। सत्रह साल में युवा हो जाएगा और अठारह साल के बाद वोट देने के काम आएगा। साथ ही कुछ आदमी सदाबहार युवा रहेंगे और कुछ सदा बाहर रखे जाएँगे। वे विपक्ष और पक्ष की तरह बच्चा और आदमी दो समूह चाहते थे। इंद्र ने बीच-बचाव करते हुए कहा, बच्चे आदमी को रात-दिन परेशान रखेंगे। सुख-चैन नहीं लेने देंगे। बड़ी आफ़त हो जाएगी उसकी। विपक्षियों ने नगाड़े बजाए और कहा, यही चाहिए, यही चाहिए, आदमी आफ़त का मारा ही होना चाहिए। उसके बच्चे होना चाहिए। रोबीली मूँछों वाले देवता ने कहा बच्चों की मूँछें नहीं होना चाहिए, तो पहलवान छाप देवता ने कहा बच्चे दुबले-पतले होना चाहिए, ताकि वे बड़ों से डर सकें। बड़े लोग उन्हें मार-पीट सकें। दरवाज़े की डेरी में दचक सकें। चुनाव आयुक्त ने कहा, बच्चे होंगे तो धरती पर बड़े-बड़े जुलूस निकलेंगे। भाषण के लिए भीड़ जुट जाएगी। चुनाव प्रचार में बच्चे वाहन और भोंगों का काम करेंगे। बच्चे आन्दोलन करने के काम आएँगे। बड़े लोग बच्चों के नाम पर काम करवा लेंगे। बच्चे होंगे तो क़ानून और व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी।
वातावरण में गर्मी आ गई। आय. जी. ने अपनी थीसिस रखी। उन्होंने कहा मनुष्य शांति से नहीं रह सके, इसलिए हम दानवों की तरह कुछ दुष्ट आदमी बनाएँगे। वे बच्चों को उड़ाएँगे। उनकी ख़रीद फरोख़्त करेंगे। उनको लूला-लंगड़ा, अंधा कर देंगे और उनसे भीख मँगवाएँगे। चोरी करना सिखाएँगे। मैं जानता हूँ अपने डिपार्टमेंट वालों को। दुष्ट आदमियों को पकड़ना उनके बलबूते की बात नहीं है। इसीलिए आदमी हमेशा परेशान रहेगा ख़ुद के बच्चों से। सदन ने तालियों की गड़गड़ाहट से इस प्रस्ताव का भी स्वागत किया।
श्रममंत्री ने घोर आपत्ति की। वे बच्चों के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा आदमी के बच्चे नहीं होना चाहिए। स्वर्ग में छोटे-बड़े सब काम देवताओं को ही करना पड़ते हैं। बच्चे होंगे तो आदमी के छोटे-मोटे काम वे कर लेंगे। मसलन बच्चे कंट्रोल की दुकान पर लाइन लगाएँगे। सब्ज़ी-भाजी और किराना ख़रीद लाएँगे। दूध ले आएँगे, वक़्त-बेवक़्त चाय बना देंगे। मेहमानों का मनोरंजन कर देंगे। ग़रीबों के बच्चे होटलों में कप-बसी धोकर माँ-बाप की मदद करेंगे। बच्चे होंगे तो आदमी राजाओं जैसे ठसके करेगा। सदन की कार्रवाई में श्रममंत्री के विचार भी नोट कर लिए गए।
रसदमंत्री भी खड़े हुए। वे सिर्फ़ बहस में हिस्सा लेकर अख़बार में अपना नाम छपवाना चाहते थे। उन्होंने कहा, अनाज पैदा करने के लिए धरती के लोगों को मेहनत करनी पड़ेगी। हम उन्हें इन्द्र का महत्त्व समय-समय पर समझाते रहेंगे। कभी अतिवृष्टि होगी, कभी सूखा हो जाएगा। आदमी भले ही भगवान के नाम पर बच्चे पैदा करता रहे, उनका पालन-पोषण बराबर नहीं कर पाएगा।
बेचारे शिक्षामंत्री राजनीति के मारे थे। वे सद्भावना मंडल के चेयरमैन भी थे। उन्होंने कहा हम बच्चों को पढ़ाने के बहाने स्कूल खोलेंगे। स्कूलों में मास्टर रहेंगे। वे आलतू-फ़ालतू काम प्राथमिकता के आधार पर करेंगे। गाँव-गाँव में राजनीति करेंगे। इससे राजनेताओं को फ़ायदा मिलेगा। वे स्कूलों का अनुदान जीम जाएँगे। पार्टी फंड बना कर प्रजातंत्र को ज़िन्दा रखेंगे। बच्चे नहीं होंगे तो राजनीति नहीं होगी। फिर शिक्षक बच्चों को चंदा माँगना सिखाएँगे ताकि बच्चे बड़े होकर विदेशों में ग्रांट और फॉरेन करंसी में भीख माँग सकें। वैसे छुट्टियों में बड़े बच्चे टाटपट्टियाँ बनाएँगे और छोटे बच्चे गाजर घास उखाड़ने का काम करेंगे। बच्चे देश की दौलत होंगे, इसलिए बच्चों का प्रस्ताव स्वीकृत किया जाना चाहिए। और इन्द्र सभा ने ध्वनि मत से ‘आदमी के बच्चे’ प्रस्ताव पास कर दिया।
Translated by Dr. Deepa Kumawat
Many moons ago, when the planet Earth no longer existed, Lord Indra pondered on how to flourish his empire. He called for an important plenary meeting, and almost all the sycophants from every nook and cranny graced the meeting. These sycophants were there to get some daily slice in the garb of a "yes man," to chime "yes sir, yes" only. Since Indra was looking forward to prospering the Earth, he had transferred thousands of heavenly residents to serve the purpose. But, as you know, the ordered ones weren't heirless. Playing all possible cards, they got their transfers canceled. Only Manu, the helpless one, had no approach, nor could he bear a sack of moneybag to feed someone's appetite. So, he got kicked to the curb into the pitfall of the earth straight through the "parachute."
The meeting commenced, and the home minister requested, "God's deputies shouldn't be misemployed for the earth's blossoming." Homely hands should enrich the earth. "I mean, its inhabitants should sweat to get the fruit." The courtiers got happy and joyfully shingled the drums. The creator suggested that they could get the contract to mold some million humans. "In this way, they'll chant the praises of our lord Indra on Earth too." Witnessing such a proposal, the public contractors got highly strung. They proposed that they could invent something more astounding than a human. Moreover, they created such a model of the proposed man that could yield humans automatically. This way, they escaped the complications of creating thousands of men. In order to keep nurturing their sovereignty, the creator put forth the staffing of eunuchs to kill men on Earth.
Amidst all the wrangling, one boastful clown-like deputy was feeling neglected. Patting on the drum to catch everyone's attention, he posited, "My lord, we shouldn't mold a complete human at one stretch. Rather, it should be modeled little by little from one palm span to two and three and so on. It should grow in bits and pieces. It'll be great fun, my lord. And yes, this way humans will differ from deputies, the deities. If my plea is considered, I'll proffer my beard at the pious feet of the Goddess, lord."
Meanwhile, one energized deputy took up the stage and suggested, "Until a decade, a man would be a child; a juvenile then; and at seventeen, youthfulness may embrace him, and then...he'll be a youth of use to cast his vote. Some men would be perennially young; some would be kept out. He hoped for twin groups represented by man and child; one in favor and an opponent group on the other side." Here, Lord Indra mediated and said, "Children would irritate man round the clock. They won't let men be in peace. And they'll forever be in a quandary." Hearing Indra, the opponents blew tom-toms and reacted, "This is rightly needed. The Man should be distress-stricken. He should have children around." Suddenly, a royal mustache deputy suggested, "Children shouldn't get mustaches." While a robust deputy opined, "Children should be thin and feeble so that they can have a fear of elders. And elders can beat them up or knock down their heads at the doorsteps." The election commissioner put out, "Yes, if children are there, there will be mass cavalcades on roads, a crowd free of cost, will be ready to listen to the speeches. Children can blow trumpets in election canvassing. Man can take advantage in the name of children. And there'll be utter chaos in law and order because of children."
The atmosphere became heated and tense. Now, the IG proposed, "To disrupt the peace of humans, we will create some demonic men. They will kidnap children and ask for ransom. They'll turn them lame, blind, or worthless, to force them into begging or thievery." Hence, men will be the victims of their own children forever. "I know catching the right culprit or thief isn't the officials of police's cup of tea," continued the IG. The House welcomed the IG's proposal with torrential applause.
Now, the labor minister, who seemed to disagree with the concept, objected and clarified, "I propose that men shouldn't have children. As in heaven, all deities equally take charge of all kinds of duties, men too should do the same. If children were there, men's labor would get shared amongst children. For instance, children would line up in front of ration shops, help buy groceries, household goods, milk, and even make tea for unwelcome guests at home. Children would entertain guests well. Moreover, a poor child would be absorbed in cleaning utensils at restaurants to add to family earnings. Oh! If there were children, men would swell like ruling kings." The labor minister's remarks were also recorded as proceedings of the House.
The logistic minister, who just wanted to be covered by the media, argued pointlessly, "Men on Earth would have to toil to produce crops. We shall teach them the significance of Lord Indra continually. Men shall witness heavy rains as well as droughts. Though men will beget children in the name of God, they won't be able to nurture them well."
The aimless wanderer in politics, the hapless education minister, who also chairs a Goodwill Mission, spoke out now, "If there are children, we may have the cause to open more schools. Teachers will get recruited to outperform all the baseless political agendas on priority. They'll behave like politicians across the villages to benefit regional politicians. Politicians will get help in looting government grants for schools. They'll raise and add a plus to the party fund. You know, children are important. For if they're not there, there'd be no politics. If children are there, teachers will train them to seek donations so that growing up, they can bag grants in foreign currency. And yes! During vacations, adults will make floor mats, while younger ones will learn to weed out farms. Children will be the grand asset of the nation. I recommend the proposal of making children."
And amidst the assembly of Lord Indra, the draft of "Making of the Children" was approved with a resonating voice.